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नारी विमर्श >> चैत की दोपहर में

चैत की दोपहर में

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6393
आईएसबीएन :0000000000

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चैत की दोपहर में नारी की ईर्ष्या भावना, अधिकार लिप्सा तथा नैसर्गिक संवेदना का चित्रण है।...


अन्तत: अवंती की शादी एक बहुत ही सम्पन्न परिवार में हो जाती है। ससुर एक बहुत बड़े कारखाने का मालिक है और वह अपने एकमात्र पुत्र टूटू मित्तिर को उस कारखाने के साझीदार के साथ-साथ मैनेजर भी बना देता है। अवंती की सास एक दबंग औरत है। अवंती का ससुर यह महसूस कर अपने लड़के के लिए लेकटाउन में एक मकान बनवा देता है। अपनी पत्नी से बहाना क्नाता है कि वहाँ एक नया कारखाना बनवाना है और इसीलिए लड़के और बहू का वहाँ रहना नितांत आवश्यक है।
चैत की एक दोपहर में अवंती की नजर एकाएक अरण्य पर पड जाती है जो अपने मित्र श्यामल की पत्नी लतिका, जो प्रसव-पीडा से बेहाल है, को नर्सिग होम में भर्ती करवाने की तलाश में निकला है। अवंती अरण्य की सहायता करने के लिए अपनी गाड़ी निकालती है। अरण्य हर क्षण अवंती से रूखा व्यवहार करता है।
अंततः लतिका को एक नर्सिंग होम में भर्ती कराया जाता है। डॉक्टर की अथक चेष्टा से लतिका तो बच जाती है परन्तु नवजात शिशु जीवित नहीं रह पाता है।
अवंती और अरण्य हर रोज लतिका को देखने उसके घर पर जाते हैं। लतिका धीरे-धीरे स्वस्थ हो जाती है। अरण्य ज्योंही लतिका के घर पहुँचता है, लतिका के चेहरे पर एक दीप्ति कौंध जाती है। अवंती के मन में ईर्ष्या की भावना जगती है, वह अरण्य को पुन: हर हालत में पाना चाहती है अवंती की अक्सर घर से अनुपस्थिति के कारण पति से उसका अनबन शुरू हो जाता है।

एक दिन पुन: अरण्य नौकरी पाकर कहीं दूर चला आता है। अवंती हताश हो आत्महत्या करने पर उतारू हो जाती है। वह तेजी से कार चलाती हुई जाती है-इस उद्देश्य से कि उसकी कार किसी ट्रक से टकरा जाए। अपनी पत्नी को दिन भर घर से लापता पाकर उसका पति चिंतित हो अपनी कार ले उसकी खोज में निकल पड़ता है। अन्तत: वह अवंती को खोज निकालने में सफल होता है और उससे कहता है कि चाहे तुम्हारे जितने भी प्रेमी हो, अपने घर पर उन्हें बुलाकर अड्डेबाजी करो, पर इस तरह जान देने पर उतारू मत होओ।

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